तब 3-4 साल का रहा होउंगा। मेरे क्वार्टर के थोड़ा आगे एक रेलवे लाईन थी और उसके आगे सी.आई.एस.एफ. के क्वार्टर्स। सबसे आगे वाली लाईन में बीच में ही था क्वार्टर नं. 18। उसमें एक अंकल अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ रहते थे। एक का नाम था चंचल और दूसरी का तोता। दूसरी वाली का नाम कुछ और था पर जन्म के समय उसके होंठ कुछ ज्यादा लाल थे, इसलिए उसका घर का नाम तोता ही पड़ गया था। दोनों की दोनों मुझसे बड़ी थी, पर मेरी पक्की वाली दोस्त थीं। हर शाम वो दोनों मेरे साथ खेलने आतीं थीं। मैं भी उनसे काफ़ी घुल-मिल गया था। जब भी कभी गाँव जाता तो वहाँ से ज़ल्दी वापस लौटने की ज़िद करता रहता। वो दोनों भी चिट्ठियाँ भेजकर बतातीं कि मेरे बिना क्या-क्या खेला और कहाँ-कहाँ घूमे। पर सी.आई.एस.एफ. के जवानों का तबादला जल्दी होता रहता है। एक बार गाँव से आया तो देखा उनके क्वार्टर पर ताला लगा था। पास वाली आंटी ने बताया कि वो लोग तो अब यहाँ से चले गए। लेकिन उनकी बेटियाँ बहुत रो रहीं थीं। यह सुनकर मैं भी रोने लगा। फ़िर दादी मुझे घर लेकर आ गईं और बहुत समझाया। फ़िर भी मैं बहुत दिनों तक उन्हें याद करके रोने लगता था। क्वार्टर वालों का जीवन ही कुछ ऐसा है। न चाहते हुए भी जाना ही पड़ता है। कितने भाग्यशाली होते हैं न वो लोग, जो जहाँ जन्म लेते हैं, वहीं बड़े होते हैं और वहीं मिट्टी में मिल जाते हैं। क्वार्टर का जीवन #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqmuzaffarpur #yqgudiya #yqvks