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तुम्हारा अच्छा, तुम्हारा बुरा तुमसे बेहतर समझा ज़म

तुम्हारा अच्छा, तुम्हारा बुरा तुमसे बेहतर समझा ज़माने ने ।
 नज़रों में गिराया, किसी ने आइना दिखाया ताने से ।।

जब-जब सच कहता हूं ज़माने की लगती हाय है ।
दिखता है आंखों में हम सब किसी न किसी के सताए है ।।

अरे सच तो ये है मेरे पत्थर-दिल शेर, कांच के बने हो तुम ।
टूटे बिखरे से हो और इन आंखों को किया पर्दा, अब खुदसे हो चुके हो गुम ।।

पहले कभी कर भी लेता भरोसा की तुम्हारी हंसी, तुम्हारी सख्ती सच्ची है।
पर अब मान भी लो फूल से कोमल हो तुम, भावनाओं की डोर अभी कच्ची है ।।

बोलो सबको तुम्हे भी ठेस पहुंचती है, तुमने दूसरों का अच्छा करने में खुदका चौपट किया है ।
अरे तुम तो उससे भी गर्मजोशी से मिले जिसने तुम्हें जमके "hurt" किया है ।।

कहते हो फर्क नही पड़ता और उसके बारे में रात भर सोचते हो ।
 जो दिन के उजाले में नही मिलती उसको हर रात के अंधेरे में खोजते हो ।।

यहां "तुम" तुम भी हो और मैं भी हूं, तोड़ा भी तुमने और टूटे भी तुम ही ।
कविता ये है तुम्हारी-मेरी "generation" की, जहां खोजा भी तुमने और हो गुम भी तुम ही ।। 
 ~श्रेय

©Shrey Singh zindagi ki kavita
तुम्हारा अच्छा, तुम्हारा बुरा तुमसे बेहतर समझा ज़माने ने ।
 नज़रों में गिराया, किसी ने आइना दिखाया ताने से ।।

जब-जब सच कहता हूं ज़माने की लगती हाय है ।
दिखता है आंखों में हम सब किसी न किसी के सताए है ।।

अरे सच तो ये है मेरे पत्थर-दिल शेर, कांच के बने हो तुम ।
टूटे बिखरे से हो और इन आंखों को किया पर्दा, अब खुदसे हो चुके हो गुम ।।

पहले कभी कर भी लेता भरोसा की तुम्हारी हंसी, तुम्हारी सख्ती सच्ची है।
पर अब मान भी लो फूल से कोमल हो तुम, भावनाओं की डोर अभी कच्ची है ।।

बोलो सबको तुम्हे भी ठेस पहुंचती है, तुमने दूसरों का अच्छा करने में खुदका चौपट किया है ।
अरे तुम तो उससे भी गर्मजोशी से मिले जिसने तुम्हें जमके "hurt" किया है ।।

कहते हो फर्क नही पड़ता और उसके बारे में रात भर सोचते हो ।
 जो दिन के उजाले में नही मिलती उसको हर रात के अंधेरे में खोजते हो ।।

यहां "तुम" तुम भी हो और मैं भी हूं, तोड़ा भी तुमने और टूटे भी तुम ही ।
कविता ये है तुम्हारी-मेरी "generation" की, जहां खोजा भी तुमने और हो गुम भी तुम ही ।। 
 ~श्रेय

©Shrey Singh zindagi ki kavita
shreysingh9985

Shrey Singh

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