वो खिलखिलाती धूप भी शायद कई दिनों से, सर्दी के आंचल में दुबक सी गयी है.. ओढ़ रजाई वो धुंध की, छुप कर बैठ सी गयी है... जो रोज हँसती थी, खिलखिलाती थी जिसके आँचल में वो मैया कपड़े रोज सूखाती थी सर्दी के आँचल से निकल तेरे आँचल में वो बैठा करती थी शायद सूरज चाचा कई दिनों से रुठ कर बैठे है न जाने किस बात पर वो ऐंठ कर बैठे है.. सर्द हवाएं, अंदर से कम्पकमपाए न जाने आज हमें धूप रजाई से क्यों न बुलाएँ कितने दिन से धूप वो छुप कर चुप होकर , गुमसुम सी बैठी है अब तो बहूत हुई लुका छूपी बाहर आजाओ अब तो उसके आँचल से अब तो हमे अपना आँचल ओढा दो निकलकर उसके आँचल से.... #सर्दी #धूप #मौसम #प्राची