मेरे बाद गर हो जाऊँ मैं जब रूख़सत-ए-ज़िन्दग़ी । तुम जन्नत सा अपना जहाँ इक बसाना ।। सुनें होंगे घरौंदे, दिल की गलियाँ सभी । उन गलियों में इक आशियाँ तुम बनाना ।। गर हो जाऊँ मैं जब रूख़सत-ए-ज़िन्दग़ी । तुम जन्नत सा अपना जहाँ इक बसाना ।। चूने-चूने जो लाना तुम बागों से फूल । उन फूलों से ख़ुद को बख़ूबी सजाना ।। सजना तुम सँवारना, चाँदनी बनके रहना । मेरे चाँद के टुकड़े, को यूँ जगमगाये तुम रखना ।। गर हो जाऊँ मैं जब रूख़सत-ए-ज़िन्दग़ी । तुमजन्नत सा अपना जहाँ इक बसाना ।। राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी (भाग-1) मेरे बाद