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बचपन हर एक का कहां एक सा होता है कोई खेलता है बेबा

बचपन हर एक का कहां एक सा होता है
कोई खेलता है बेबाक अपनी ही धुन में ,तो
कोई किसी कारखाने में मजदूरी करने जाता हैं
पढ़ने की उम्र में घर की जिम्मेदारियां निभाता है
घर का छोटा भी बचपने में ही बड़ा हो जाता हैं
अपनी भूख को वो यूं ही दबाना सीख जाता हैं

औरों को खिलाते - खिलाते मन से वो भी रो देता हैं
कड़ी धूप में अपनी चमड़ी को वो जलाता हैं
फ़िर कहीं जाकर वो अपनी बाबा की दवा ला पाता है
कितनी भी ज़रूरत क्यों ना हो उसे , लेकिन 
किसी के आगे वो हाथ नहीं पसारता है
अपनी मेहनत का खाता और खिलाता है

संघर्ष जो होता है आरंभ बचपन से इनके , तो 
जीवन पर्यन्त अनवरत चलता ही रहता हैं
ये बाल मजदूर भी तो आख़िर बच्चे ही होते हैं
इन्हें भी अपने बचपने पर पूरा अधिकार होता है
कानून तो इनके हक़ में बहुत बना हुआ है, लेकिन 
आज़ भी बाल मजदूर कहीं भी कम नहीं हैं।

©Sadhna Sarkar #walkalone #ankahe _jazbat
 
बाल मजदूर एक कानूनन अपराध
बचपन हर एक का कहां एक सा होता है
कोई खेलता है बेबाक अपनी ही धुन में ,तो
कोई किसी कारखाने में मजदूरी करने जाता हैं
पढ़ने की उम्र में घर की जिम्मेदारियां निभाता है
घर का छोटा भी बचपने में ही बड़ा हो जाता हैं
अपनी भूख को वो यूं ही दबाना सीख जाता हैं

औरों को खिलाते - खिलाते मन से वो भी रो देता हैं
कड़ी धूप में अपनी चमड़ी को वो जलाता हैं
फ़िर कहीं जाकर वो अपनी बाबा की दवा ला पाता है
कितनी भी ज़रूरत क्यों ना हो उसे , लेकिन 
किसी के आगे वो हाथ नहीं पसारता है
अपनी मेहनत का खाता और खिलाता है

संघर्ष जो होता है आरंभ बचपन से इनके , तो 
जीवन पर्यन्त अनवरत चलता ही रहता हैं
ये बाल मजदूर भी तो आख़िर बच्चे ही होते हैं
इन्हें भी अपने बचपने पर पूरा अधिकार होता है
कानून तो इनके हक़ में बहुत बना हुआ है, लेकिन 
आज़ भी बाल मजदूर कहीं भी कम नहीं हैं।

©Sadhna Sarkar #walkalone #ankahe _jazbat
 
बाल मजदूर एक कानूनन अपराध