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उदासियों के इस शहर में एक आवारा मेरा मन कूचा -कूचा

उदासियों के इस शहर में एक आवारा मेरा मन
कूचा -कूचा , बस्ती-बस्ती गम का मारा मेरा मन 

दिल के दिल पर ज़ुल्म हुए , भरम रहा इस मन को
ख़ुद ही मुंसिफ, ख़ुद ही क़ैदी, ख़ुद से हारा मेरा मन 

क़ैद भी कैसी आज़ादी , मौत भी कैसी आज़ादी
एक रस्ता है , एक मंजिल है , एक बंजारा मेरा मन 

चिता सजाई ख़ुद इसने , फिर आग लगी पल भर में
ख़ाक उड़ी,राख बची और जलता एक अंगारा मेरा मन
-"अमन"

©aman verma
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