मैं अब उकता गई हूं कुछ भी अच्छा नहीं लगता....! सहेज के रखें थे रिश्ते कई दर्द मे जरूरत पड़ने पर अपना साया तक संग नहीं दिखता....! डर लगता था मरने से मगर अब जीने जैसा भयावह कुछ नहीं लगता....! मैं नहीं जानती सत्य क्या है क्या है मिथ्या मगर मैं जानती हूं यह कई दफा कैद हो जाती लोगों की सोच में , उनके समझ के हिसाब से लोग मेरे लिए जैसा सोचते हैं मैं वैसे ही बनती जा रही हूं.... मैं अपनी चारों तरफ के पिंजरे को स्वयं ही स्वीकार चुकी हूं! और इसकी चाबी कर दिया है दूसरों के हवाले... ©Katha(कथा) #alone मैं अब उकता गई हूं mahi singh shivom upadhyay Pyare ji MM Mumtaz Muna Uncle Pyare ji WISH Gautam अdiति ༎ คyat ༎ Yash Mehta नीर