यादें-ए-इश्क से अब बफा नहीं करते, रहते है खामोश अब लफ्ज़ बया नहीं करते। अकेलेपन से जो कभी-कभी तसल्ली मिलती है, भूल जाता हूं सारे गम जब, उससे मेरी निगह मिलती है। #यादें-ए-#इश्क से अब #बफा नहीं करते, रहते है #खामोश अब #लफ्ज़ #बया नहीं करते। #अकेलेपन से जो कभी-कभी #तसल्ली मिलती है, #भूल जाता हूं सारे #गम जब, उससे मेरी #निगह मिलती है। #khnazim