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|| श्री हरि: || 57 - स्नेहाश्रय 'दादा, तू बुला इन

|| श्री हरि: ||
57 - स्नेहाश्रय

'दादा, तू बुला इन सबको।' कन्हाई हंस रहा है। मृग उसके चरणों को अपनी लाल - लाल कोमल जिव्हा से चाट लिया करते हैं बार-बार। गिलहरियां उनसे भी अधिक धृष्ट हैं। वे श्याम के अंगों को ही अपनी शय्या बनाना चाहती हैं। पक्षियों का समुदाय पृथक फुदकता-उमड़ता रहता है। इसके चारों ओर मृग बछड़ों के समान इसे बार-बार सूंघते रहना चाहते हैं।

'तू एक बच्चा लेगा कृष्ण मृग का।' दाऊ बड़े स्नेह से एक मृगी को दूर्वा खिला रहा है। मृगी का नवजात शिशु दाऊ के पास उससे सटकर बैठ गया है।

'मैं इसे घर ले चलूंगा।' श्यामसुंदर ने मुड़कर देखा बड़े भाई के पास बैठे मृग शावक को। सचमुच बहुत सुंदर बच्चा है। दौड़ आया कन्हाई और गोद में भर लिया उसने शावक को।
anilsiwach0057

Anil Siwach

New Creator

|| श्री हरि: || 57 - स्नेहाश्रय 'दादा, तू बुला इन सबको।' कन्हाई हंस रहा है। मृग उसके चरणों को अपनी लाल - लाल कोमल जिव्हा से चाट लिया करते हैं बार-बार। गिलहरियां उनसे भी अधिक धृष्ट हैं। वे श्याम के अंगों को ही अपनी शय्या बनाना चाहती हैं। पक्षियों का समुदाय पृथक फुदकता-उमड़ता रहता है। इसके चारों ओर मृग बछड़ों के समान इसे बार-बार सूंघते रहना चाहते हैं। 'तू एक बच्चा लेगा कृष्ण मृग का।' दाऊ बड़े स्नेह से एक मृगी को दूर्वा खिला रहा है। मृगी का नवजात शिशु दाऊ के पास उससे सटकर बैठ गया है। 'मैं इसे घर ले चलूंगा।' श्यामसुंदर ने मुड़कर देखा बड़े भाई के पास बैठे मृग शावक को। सचमुच बहुत सुंदर बच्चा है। दौड़ आया कन्हाई और गोद में भर लिया उसने शावक को। #Books

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