तितली;जरा गुनगुनाओ न कुछ गीत-२ फैला पँखों को हवा में उड़ते हुए; छेड़ दो न इक तराना इन पत्तों संग-२ जिन्हें है मिटटी में मिल जाना फिर जड़ों से होते हुवे शाखाओं में घुल जाना;तितली प्रकृती में प्रवाह है-२ कड़ों का कड़ों में;जड़ों का जड़ों में, जैसे तुम्हारे गीत जो होते हैं प्रवाहित हवा के रास्ते कानों तक फिर दिल में जाकर रूह में उतर जाते हैं #part_1#my_life#titli#Mylove#hug_day