बचपन और क्रिकेट हाय! ये कैसे खेल का नाम ले लिया; क्रिकेट कि क्यों याद दिला दी; इसमें आत्मा बसती थी; खुद को सचिन, द्रविड़ समझते थे; मौसम चाहे जो भी हो कुछ न समझते थे; स्कूल के बाद सारा टाइम ग्राउंड में बिताते थे; खूब स्टाइल मारते थे; खिलाड़ियों के नकल उतारते थे; इस खेल पर जान छिड़कते थे; सपने में भी खेलते थे; घर को ग्राउंड बनाते थे; घर के बड़े चिल्लाते थे; लेकिन हम कहाँ मानने वाले थे। हाय! ये कैसे खेल का नाम ले लिया; #क्रिकेट कि क्यों याद दिला दी; इसमें आत्मा बसती थी; खुद को सचिन, द्रविड़ समझते थे; #मौसम चाहे जो भी हो कुछ न समझते थे; स्कूल के बाद सारा टाइम ग्राउंड में बिताते थे; खूब स्टाइल मारते थे; खिलाड़ियों के नकल उतारते थे;