धुंध छाई है समझ पर रुको कुछ दिन, कुछ नहीं पड़ता दिखाई रुको कुछ दिन, भेद खुल जाएगा जब पर्दा हटेगा, तमाशाई लोग सारे रुको कुछ दिन, हर तरफ है शोर का साम्राज्य बरपा, कुछ नहीं पड़ता सुनाई रुको कुछ दिन, लूट में शामिल थे जितने कबीलाई, एक दिन होगी विदाई रुको कुछ दिन, क्या भला क्या बुरा है परिणाम बोले, रहेंगे फिर संग सारे रुको कुछ दिन, आदमी औक़ात अपनी भूल जाता, फूट जाएगा घड़े सा रुको कुछ दिन, जब तलक जीवित हो लो आनंद गुंजन, बिछड़ जायेंगे मुसाफ़िर रुको कुछ दिन, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #रुको कुछ दिन#