कहा था न तुमसे, की स्याही कुछ मलिन सा है शायद कोई अभिव्यक्ति का भास्कर पनप रहा होगा। मलिन सा चरित्र, उन्मुख हो आलोकित हो रहा है प्रतिवेश का प्रारब्ध भी मानों अब सुशोभित होगा।। लहरों का तन्मयता देखो अब संजाफ़ से प्रताड़ित है। कोई संघर्ष का सामर्थ्य शायद समृद्ध हो रहा होगा।। लड़ने की विवेचना भी अब विमर्षगामी है। मुझे शक है कि कोई अब विवेक का मशाल जला रहा होगा।। हाँ अब धरा ,गगन और पवन भी कुछ संगामी सा है अंतर्द्वंद का प्रतिरूप शायद अब कोई हवन कर रहा होगा।। कहा था न तुमसे, की स्याही कुछ मलिन सा है शायद कोई अभिव्यक्ति का भास्कर पनप रहा होगा। भास्कर अभिव्यक्ति का ओज #nojoto #nojotohindi #bhaskarpoetry #हिन्दी