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ये दूरी अच्छी लगती है। ना मिलेंगे तुमसे, फिर कुछ


ये दूरी अच्छी लगती है।

ना मिलेंगे तुमसे, फिर कुछ वक़्त बस हम ख़्यालों से काम चला लेंगे,
दिल रख करीब़ कर जिश़्मों से फ़ासला, ये तुम्हे भी सुबह - शाम सलाह देंगे।
जो ना महसूस होती ये ब़ीमारी, ना इन आँखों से दिखती है,
ऐसे माहौल में बस हाल सलामत रहे, तो ये दूरी अच्छी लगती है।

ना जाने किसके हाथों ने किसके हाथों से ज़ाम लिया है,
बदमाश छींकों ने आज किसकी बद्किस्मती को पैगाम दिया है,
आज तेरी सांसें रूकी हैं हमें देख, या कुछ दिन से सांस लेने में दिक्कत रहती है,
इस दिमागी कसरत से जब भली हों तन्हाईयाँ, तो ये दूरी अच्छी लगती है।

जज़्बातों में गर्मियां सही, बस बदन की गर्मियों पर सवाल है,
हिचकियों पे बरसेगा प्यार, गर एक खाँसी जो आयी तो बवाल है।
ख़त्म करोना कहर ये, मिलने में हमें ज़माने की नज़र भी बचानी पड़ती है,
बस मुलाक़ात में इंतज़ार का वक़्त मुक़र्रर हो, तो ये दूरी अच्छी लगती है।

- आशीष कंचन
 #दूरी #shayari #poetry #seventhquote #yqdidi #collab #love #coronavirus

ये दूरी अच्छी लगती है।

ना मिलेंगे तुमसे, फिर कुछ वक़्त बस हम ख़्यालों से काम चला लेंगे,
दिल रख करीब़ कर जिश़्मों से फ़ासला, ये तुम्हे भी सुबह - शाम सलाह देंगे।
जो ना महसूस होती ये ब़ीमारी, ना इन आँखों से दिखती है,
ऐसे माहौल में बस हाल सलामत रहे, तो ये दूरी अच्छी लगती है।

ना जाने किसके हाथों ने किसके हाथों से ज़ाम लिया है,
बदमाश छींकों ने आज किसकी बद्किस्मती को पैगाम दिया है,
आज तेरी सांसें रूकी हैं हमें देख, या कुछ दिन से सांस लेने में दिक्कत रहती है,
इस दिमागी कसरत से जब भली हों तन्हाईयाँ, तो ये दूरी अच्छी लगती है।

जज़्बातों में गर्मियां सही, बस बदन की गर्मियों पर सवाल है,
हिचकियों पे बरसेगा प्यार, गर एक खाँसी जो आयी तो बवाल है।
ख़त्म करोना कहर ये, मिलने में हमें ज़माने की नज़र भी बचानी पड़ती है,
बस मुलाक़ात में इंतज़ार का वक़्त मुक़र्रर हो, तो ये दूरी अच्छी लगती है।

- आशीष कंचन
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