#OpenPoetry वीरानो की ख़ामोशी बन जाती थी, जब वो मेरी नज़रों से टकराती थी! प्यार तो था मेरी खातीर उसके दिल में, पर कहने से जाने क्यू घबराती थी! इंटरनेट से तेज कनेंकशन था अपना, खाँसी भर से बालकनी खुल जाती थी! घर के बाजू में था उसका घर फिर भी, हप्ते हप्तो बाद नजर वो आती थी! प्यार की बातो से वो हरदम घबराये, पर चौका बरतन में सबकी नानी थी! इतने से ही दिल अपना गा उठता था, जब वो मेरे नाम से मुझे बुलाती थी! चीनी ,तेल ,नमक तो सब हथकंङे थे, इसी बहाने घर में आती जाती थी! Insight...