उन चरणों की धूल बहुत है उर्जित बोलों के फूल बहुत है उस वटवृक्ष की छाया सुंदर उसके विस्तृत मूल बहुत हैं सहज अचंभा है जग में वो उनका तो उपकूल बहुत है मुझे भले तृण हो जाने दो साहित्य सुरसरि सुख पाने दो हां! वहीं मुझे तुम उग आने दो उर में उर्मि प्रवर गाने दो हां! उस धुन पर लहराने दो रश्मिरथी जिस पथ आने को उस पर मुझको बिछ जाने दो मेरे स्वर भाष्कर दिनकर को वाणी! जीवन अमृतरस साने को #toyou #yqdinkar #yqlove #yqliterature #yqhindi #yqdedication