आज-कल काल चक्र में फंसे मनुष्य दुविधा में फंसे रह जाते हैं बीते और आने वाले कल को वो आज मैं जिये जाते हैं जो बीत गया वो अटूट हैं उसका प्रतिबिंम्ब कालकूट हैं न बदलेगा कभी, न ही मिटेगा बार बार उस क्षण को कब तक जियेगा जो आने वाला हैं वो कल्पना हैं कभी क्रूर संभावना, कभी हसीन सपना हैं जिसका अस्तित्व नहीं उससे डरता हैं कल के डर से आज को ढकता हैं आज यह क्षण ही जीवन जीवंत हैं इसी क्षण में समाई ये सृष्टि अनन्त हैं जो आज हैं उसका मान रख ले आज ही सत्य हैं, बाकी मनघडंत हैं मुकुल पाल #Aajkal