जुदाई की रात जैसें सहरा में चलना मुद्दतों ग़म की आग़ोश में अब है रहना !! खि़जाओं के मौसम में फूलों का खिलना कि मुफ़लिस के घर में चिराग़ों का जलना !! लोगों के लिए देंखो मुश्किल बहुत हैं यहाँ ग़म के कांँटों से बचना संभलना !! कठिन है डगर औ’ कठिन है यें जीवन सदा फिर भी मुझको अकेले हैं चलना !! यें जीवन तो है आग का एक दरियाँ कि हर हाल में इसको है पार करना ।। #सहारा #मुफ़लिस #गमों_के_खारों #चिराग_ए_मोहब्बत