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आज उन रस्तों पर फिर से गुजरे है जिन रस्तों पर हम ट

आज उन रस्तों पर फिर से गुजरे है
जिन रस्तों पर हम टकराये थे
आज आँखे फिर से भर आई
जहां कई सपने मेरे टूटे है

कोई कहता था... कि 
वो, अपना है
जो रस्ते पर
मुझको छोड़ गया
फूल का एक गुलदस्ता 
वो बेदर्दी से तोड़ गया

बिखर गया वो गुलदस्ता
फिर बिखरा देख 
सबने उसको कुचल दिया
उस मंजर से मैं आज फिर से 
सिहर गया

मैं फिर से आज बिखर गया


                  shwet

©Shweta Gupta
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