मौला जो खुद से अनजान है देखता, परखता... जोड़ता है, यह आज लगे बड़ा लालची है, मौन का कशाकश करें भेद-भाव, विहंगम सदृश्य करो ना मोलभाव, नाद नर की, कि नारायण करें हूंकार, कालिका करें दलन, हरे दुःख, तम संहार, धू-धू कर जल जाए माटी संग व्यर्थ अहंकार! कल जो अजनबी है मौला जो खुद से अनजान है देखता, परखता... जोड़ता है, यह आज लगे बड़ा लालची है, मौन का कशाकश करें भेद-भाव, विहंगम सदृश्य करो ना मोलभाव, नाद नर की, कि नारायण करें हूंकार, कालिका करें दलन, हर दुःख का संहार,