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खिड़की के बाहर देखने को जब मैने पर्दा सरकाया था इक

खिड़की के बाहर देखने को जब मैने पर्दा सरकाया था
इक नज़र टकराई मेरी नज़र से दिल में कोई आया था।

देखा जो उसको तो उसको ही हर बार देखा मेरे दिल ने
पलकों ने सज़ा लिए ख़्वाब जब वो नज़र को भाया था।

इक सुरमई दिलकश ख़ुशबु हवा के साथ बहती आयी थी
इक क़िस्सा पुराना सा फ़िर मेरे दिल ने मुझे सुनाया था।

यादों के झरोखे से जब हम देखा किये उसका रास्ता
संदल सी खुशबु से उसने बेचैन दिल को महकाया था।

जिस शाम उस अज़नबी ने मुझे देखा था यूँ मुस्कुराकर
उसी शाम चाँद तारों ने भी मुझे लोरी गा के सुलाया था।

आमद से उसकी धनक ने मिरे आँगन में सौ अंगड़ाइयाँ ली 
बनकर रंगरेज़ उसने मेरे कोरे ख़्वाबों को रंगी बनाया था।

वो आसमां सारा था मेरे आज़ाद परों की परवाज़ का
उसके सिवा आज तक मेरी जिंदगी में कोई न आया था।

©Arpan@
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