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जब भीतर मेरे तु है, तब कैसी फ़िर दूरी है, मैं हूँ

जब भीतर मेरे तु है, तब कैसी फ़िर दूरी है, 
मैं हूँ महका महका मृग सा, तु मेरी कस्तूरी है।
ढूढ़ रहा है पागल मन तू जिसको मंदिर,मस्जिद में,
वो बैठा है तेरे अंदर बनकर तेरे वाजिद (प्रेम)में।

©Actor vivek poetry #कस्तूरी
#वाजिद
#मंदिर 
#मस्जिद
जब भीतर मेरे तु है, तब कैसी फ़िर दूरी है, 
मैं हूँ महका महका मृग सा, तु मेरी कस्तूरी है।
ढूढ़ रहा है पागल मन तू जिसको मंदिर,मस्जिद में,
वो बैठा है तेरे अंदर बनकर तेरे वाजिद (प्रेम)में।

©Actor vivek poetry #कस्तूरी
#वाजिद
#मंदिर 
#मस्जिद