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#OpenPoetry दिन अंधे और रात बहरी होने लगी है शायद

#OpenPoetry दिन अंधे और रात बहरी होने लगी है
शायद ये दोस्ती अब ओर गहरी होने लगी है
बेज़ान से चेहरे में भी जान रहने लगी है
हर दर्द के पीछे भी मुस्कान रहने लगी है
अकेलेपन की निशानियां अब दूर होने लगी है
ज़िन्दगी अब दोस्ती के करीब होने लगी है
लाख शिकायतों के बीच जिम्मेदारी रहने लगी है
धीरे धीरे ही सही,दोस्ती असरदार होने लगी है
ज़िद तो बस एक साथ रहने की लगी है
वरना मुश्किले तो आज भी पीछे लगी हैं
बिछुड़ कर जाने की ये बात सीधी दिल पे लगी है
दोस्त,अब ये दोस्ती नही,ज़िन्दगी लगने लगी है
बिन तेरे ये ज़िन्दगी उदास रहने लगी है
बस तुझे पी जाने की प्यास गहरी लगी है
दिन अंधे और रात बहरी होने लगी है
शायद ये दोस्ती अब और गहरी होने लगी है #OpenPoetry
#OpenPoetry दिन अंधे और रात बहरी होने लगी है
शायद ये दोस्ती अब ओर गहरी होने लगी है
बेज़ान से चेहरे में भी जान रहने लगी है
हर दर्द के पीछे भी मुस्कान रहने लगी है
अकेलेपन की निशानियां अब दूर होने लगी है
ज़िन्दगी अब दोस्ती के करीब होने लगी है
लाख शिकायतों के बीच जिम्मेदारी रहने लगी है
धीरे धीरे ही सही,दोस्ती असरदार होने लगी है
ज़िद तो बस एक साथ रहने की लगी है
वरना मुश्किले तो आज भी पीछे लगी हैं
बिछुड़ कर जाने की ये बात सीधी दिल पे लगी है
दोस्त,अब ये दोस्ती नही,ज़िन्दगी लगने लगी है
बिन तेरे ये ज़िन्दगी उदास रहने लगी है
बस तुझे पी जाने की प्यास गहरी लगी है
दिन अंधे और रात बहरी होने लगी है
शायद ये दोस्ती अब और गहरी होने लगी है #OpenPoetry