कहा से लाऊँगा दौलत मैं ##याप के लिये, नहीं कर पाऊंगा अब चाहतों कुछ आप के लिये ! बदन तपता है मेरा रोज़ चंद सिक्को को, तुम्हीं कहो मैं सुनू खुद की या सुनू आप के लिये ? चाहता चाँद से ही करलू कुछ मैं गौर तलब, चाँद फिर चाँद कहा लगता मुझे आप के लिये ! -Navdeep Panchal 'Shubh'