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मेरी आशिकी को हवा तो न दे, मेरे जख्मों को दवा तो

मेरी आशिकी को हवा तो न दे, 
मेरे जख्मों को दवा तो न दे। 
नामुराद हैं फिर से जी उठेंगे
उम्र-ए-दराज की मुझे दुआ तो न दे। 
बेगुनाह हूँ मैं मेरा कसूर ही क्या है 
उलफत करने की मुझे सजा तो न दे। 
तू गैर को चाहे तो कोई शिकवा नहीं 
मगर मेरे उलफत-ए-यकीन को दवा तो न दे। 
बड़ी मुश्किल से संभला हूँ मैं 
मेरे दिल को कोई और मुद्दा तो न दे। 

मेरी आशिकी को हवा तो न दे, 
मेरे जख्मों को दवा तो न दे। 

बी डी शर्मा (साहिल) चण्डीगढ़ 
24.04.1995 आशिकी
मेरी आशिकी को हवा तो न दे, 
मेरे जख्मों को दवा तो न दे। 
नामुराद हैं फिर से जी उठेंगे
उम्र-ए-दराज की मुझे दुआ तो न दे। 
बेगुनाह हूँ मैं मेरा कसूर ही क्या है 
उलफत करने की मुझे सजा तो न दे। 
तू गैर को चाहे तो कोई शिकवा नहीं 
मगर मेरे उलफत-ए-यकीन को दवा तो न दे। 
बड़ी मुश्किल से संभला हूँ मैं 
मेरे दिल को कोई और मुद्दा तो न दे। 

मेरी आशिकी को हवा तो न दे, 
मेरे जख्मों को दवा तो न दे। 

बी डी शर्मा (साहिल) चण्डीगढ़ 
24.04.1995 आशिकी
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