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एक बूंद नेह की आंखों से गिरी ही थी गिर गयी स्नेह

एक बूंद नेह की
 आंखों से गिरी ही थी
गिर गयी 
स्नेह रूपी सीपी में 
बन गयी 
मोती और कितने  हृदयों का
 हार हो गयी।
वही दूसरी ओर 
एक बूंद 
गिरी 
 अभिलाषाओं से लिप्त
 स्वार्थ की मैली सोच पर । 
अब आँखों मे क्रोध है
 कंचोट है
उद्विघ्न मन उलाहने 
सुनकर  
विरोध कर रहा है ।
बूंद अब विषैली हो चली है 
विषधरों के उद्देश्यों 
की कुंठाओं की 
बेदी पर चढ़ने को 
अस्तित्व खोने को बूंद का भाग्य
एक बूंद नेह की
 आंखों से गिरी ही थी
गिर गयी 
स्नेह रूपी सीपी में 
बन गयी 
मोती और कितने  हृदयों का
 हार हो गयी।
वही दूसरी ओर 
एक बूंद 
गिरी 
 अभिलाषाओं से लिप्त
 स्वार्थ की मैली सोच पर । 
अब आँखों मे क्रोध है
 कंचोट है
उद्विघ्न मन उलाहने 
सुनकर  
विरोध कर रहा है ।
बूंद अब विषैली हो चली है 
विषधरों के उद्देश्यों 
की कुंठाओं की 
बेदी पर चढ़ने को 
अस्तित्व खोने को बूंद का भाग्य