पिता (भगवान) यूँ तो भाग्य विधाता जग का, है कहलाता उपरवाला। थाल सजाकर हम भी पूजते, पाथर के उस मूरत को।। बिन स्वारथ सब दिया पिता ने, फिर भी ना हम इनको पहचाने। नहीं पिता है चाहे कुछ भी, अपनी इन औलादों से।। फिर क्यूं मुकर जाते हैं बेटे, पिता से किये वादों से। होता इनका बस इक सपना, हो खुशहाल कुटुम्ब एक अपना।। घर में मन्दिर एक बन जाये, जिसमें चारों धाम समाये। जिसकी रचना से हम जनम हैं पाये, हर क्षण उसको हैं रुलाये।। बचपन में नन्हे पैरों से हमने जिनको मारा था। जिसने कन्धों पर अपने हमारा भार उठाया था।। जिनके पीठ पर चढ़कर हमने घोड़ा दौड़ाया था। एक समय था तब का वो, जब हम बच्चे कहलाते थे।। एक समय अब आज है आया, जब बूढ़े बाप बच्चे कहलाते हैं। बचपन से जिनकी छाया में, हम हैं पले बढ़े हुए।। अब है अपने पिता की बारी, पर हम नासमझ हैं बने हुए। चार दिनों की खुशियाँ लेकर, बेटों को सब दे जायेंगे।। पाकर अपने बच्चों का प्यार, स्वर्ग को प्राप्त कर जायेंगे। आओ कर लें प्यार पिता से, बूढ़े तन के इस ढाँचे को।। चन्द रोज के इस माया से, इक दिन पिता मुक्त हो जायेंगे। जिस दिन पापा छोड़ के जायेंगे, आँखों में असंख्य आँसू दे जायेंगे ।। @उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी पिता जी