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प्रेम करना जितना सरल है, उसे निभाना उतना ही कठिन ह

प्रेम करना जितना सरल है, उसे निभाना उतना ही कठिन है। होने को एक पल में ही हो जाए, पर उसे सफल बनाने के लिए काफ़ी प्रयास करना पड़ता है।

प्रेम- एक तपस्या है, कितने ही तप करने पड़ते हैं इसमें, और फ़िर ये ज़रूरी भी नहीं की जिससे प्रेम करते हैं उसे पा भी लें।
भगवान राम धरती पर अवतरित हुए क्या उन्होंने नहीं की इस प्रेम के लिए अथाह तपस्या? माँ सीता के बिचोह में उन्होंने कैसे कैसे दिन नहीं काटे? माँ सीता ने भी इसी पीड़ा को सहा।

भगवान कृष्णा, क्या उन्होंने तपस्या नहीं की इस प्रेम के लिए? माँ राधा का का तो पूरा जीवन ही श्री कृष्णा की प्रतीक्षा करते बीता। प्रेम तो आत्मा से आत्मा का बंधन है, शरीर चाहे कहीं भी रहें, पर आत्मा तो उसी एक शख्स में समाहित होती है। प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती, ये एक भाव होता है। ये त्याग करना सिखाता है, इसमें अपेक्षा नहीं होती है।
ये सिर्फ़ प्रेमी और प्रेमिका के बीच का बंधन ही नहीं है, एक माँ को अपने बच्चों से प्रेम होता है, भाई को बहन से, पुत्री को पिता से, देशप्रेम, यहाँ तक की पशुओं का मानव से भी। इसका कोई रूप और सीमा नहीं है।

इसमें कोई अकल लगाने की भी आवश्यकता नहीं, इसके लिए तो बस प्रेम भरा हृदय और दृष्टि ही काफ़ी है। प्रेम तप है, प्रेम में इतनी शक्ति है की ये बड़ी से बड़ी बाधा तक पार कराने का सामर्थ रखती है। और एक प्रेम भरे हृदय में सदा ही ईश्वर का वास निहित होता है। (प्रेम - एक तपस्या - 05)

#kkप्रेमएकतपस्या
#जन्मदिनकोराकाग़ज़
#kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता
#collabwithकोराकाग़ज़
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#nazarbiswas
प्रेम करना जितना सरल है, उसे निभाना उतना ही कठिन है। होने को एक पल में ही हो जाए, पर उसे सफल बनाने के लिए काफ़ी प्रयास करना पड़ता है।

प्रेम- एक तपस्या है, कितने ही तप करने पड़ते हैं इसमें, और फ़िर ये ज़रूरी भी नहीं की जिससे प्रेम करते हैं उसे पा भी लें।
भगवान राम धरती पर अवतरित हुए क्या उन्होंने नहीं की इस प्रेम के लिए अथाह तपस्या? माँ सीता के बिचोह में उन्होंने कैसे कैसे दिन नहीं काटे? माँ सीता ने भी इसी पीड़ा को सहा।

भगवान कृष्णा, क्या उन्होंने तपस्या नहीं की इस प्रेम के लिए? माँ राधा का का तो पूरा जीवन ही श्री कृष्णा की प्रतीक्षा करते बीता। प्रेम तो आत्मा से आत्मा का बंधन है, शरीर चाहे कहीं भी रहें, पर आत्मा तो उसी एक शख्स में समाहित होती है। प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती, ये एक भाव होता है। ये त्याग करना सिखाता है, इसमें अपेक्षा नहीं होती है।
ये सिर्फ़ प्रेमी और प्रेमिका के बीच का बंधन ही नहीं है, एक माँ को अपने बच्चों से प्रेम होता है, भाई को बहन से, पुत्री को पिता से, देशप्रेम, यहाँ तक की पशुओं का मानव से भी। इसका कोई रूप और सीमा नहीं है।

इसमें कोई अकल लगाने की भी आवश्यकता नहीं, इसके लिए तो बस प्रेम भरा हृदय और दृष्टि ही काफ़ी है। प्रेम तप है, प्रेम में इतनी शक्ति है की ये बड़ी से बड़ी बाधा तक पार कराने का सामर्थ रखती है। और एक प्रेम भरे हृदय में सदा ही ईश्वर का वास निहित होता है। (प्रेम - एक तपस्या - 05)

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Nazar Biswas

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