कितनी दुकानें है, यहाँ खुली, बंद होती कितनी ही रोज़ है, राबता जब तक किसी से किसी का है यहाँ, तब तक के लिये ही तू ज़हन में उसके अफरोज़ है, कोई लम्हा अब नहीं मोड़ लाएगा वो दौर फिर से, तू क्यूँ अब भी आरज़ू-ए उसके बरोज़ है। ✍mahfuz लव स्टोरी खत्म होने पर