पतित हो तुम पावन हो तुम , एक पुत्र की माता हो तुम ! सक्ति हो तुम सामर्थ हो तुम , एक पुरूष की भार्या हो तुम ! शीतल हो तुम निर्मल हो तुम , एक भ्राता की अनुजा हो तुम ! चंचल हो तुम सुन्दर हो तुम , एक जनक की तनुजा हो तुम ! मेरी ये पंक्तियाँ नारी और पुरुष के उन विषेश चार संबंधों को दर्शाती हैं जिसमें नारी तो एक ही है पर अपने इन अलग-अलग संबंधों में पुरूष को क्या क्या रूप दिखाया है एक पुत्र के लिये माँ से पावन दूसरी कोई नारी नहीं , एक पुरूष को उसकी पत्नी से ही वह सक्ति और सामर्थ प्राप्त होता है जिससे वह अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुये संसार सागर को पार करता है , एक भाई के लिये उसकी बहन का गुस्सा भी सीतल और निर्मल छाँव की तरह होता है क्यों की वह उसकी एक सच्ची दोस्त की तरह होती है खुद तो डाँट लेती है पर उसकी छो