ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ, भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ. आज ग़ुलों में हौड लगी है, ख़ुदका बाग़ बनाने की, और माली भी देता राय, छिन के रोटी खाने की, कैसे कहूँ जो बाँट के खाए मैं वो हिंदुस्तान हूँ. ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ, भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ. छोड़ तिरंगा लहराते वो अपने झंडे शान से,