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धुआ धुआ हो रहा है घर तुम्हारा ///////////////\\\\\

धुआ धुआ हो रहा है घर तुम्हारा
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आग   की  दरिया  में  तुम  हो , समंदर  में   नहीं ,
धुआं     धुआं    हो      रहा     है     घर   तुम्हारा ।
आज   के  हिंदुस्तान  में  तुम हो , सतयुग में नहीं ,
खौफनाक    भाईजान     का    मंजर   है    यहां ।
इतिहास  बदल  दिया  है  तुम्हारे   अस्तित्व   का ,
नशा   उतरता   नहीं   तुम्हारा   सेकुलरिज्म   का ।
खाक  सब  कुछ  होगा  तुम्हारा कुछ  समय बाद ,
इतिहास  बन  जाओगे  तुम  हो  जाओगे  बर्बाद ।
हैरत   नहीं   होती  मुझे  हिन्दुओं   तुम्हें  देखकर ,
जाना होगा  एक दिन अपना  बिस्तर  समेट कर ।
धरती नहीं बचेगी तुम्हारे लिए नहीं बचेगा समंदर ,
पुछो अपने भाईचारा सोच से कहां बनाओगे घर ।
तुम   विशाल    पर्वत  बनो   सिर्फ    पत्थर  नहीं ,
तुमसे    ले   सकता    है    कोई    टक्कर    नहीं ।
तुम्हें  मिटाने  को  विशेष  धर्म  एक साथ खड़ा है ,
तुम  खुद  को  हराने  के   लिए  अकेला  पड़ा  है।
किरणें  तुम  से   निकलती  है उसे  आग बना दो ,
खुशबू  भरी  गुलाब से  कांटो भरा  बाग बना दो ।
दूरियां मिटा कर फिर से पुराना इतिहास बना दो ।
मैं प्रमोद साथ हूं तुम्हारा हर जन्म में।
भारत भूमि को ऋषि मुनियों का हिंदू राष्ट्र बना दो ।
नए  भारत  में  तुम  हो , रहो  गफलत  में  नहीं ,
आग की दरिया में तुम हो समंदर में नहीं ।।
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प्रमोद मालाकार की कलम से

©pramod malakar #धुआ धुआ हो रहा है घर तुम्हारा
धुआ धुआ हो रहा है घर तुम्हारा
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आग   की  दरिया  में  तुम  हो , समंदर  में   नहीं ,
धुआं     धुआं    हो      रहा     है     घर   तुम्हारा ।
आज   के  हिंदुस्तान  में  तुम हो , सतयुग में नहीं ,
खौफनाक    भाईजान     का    मंजर   है    यहां ।
इतिहास  बदल  दिया  है  तुम्हारे   अस्तित्व   का ,
नशा   उतरता   नहीं   तुम्हारा   सेकुलरिज्म   का ।
खाक  सब  कुछ  होगा  तुम्हारा कुछ  समय बाद ,
इतिहास  बन  जाओगे  तुम  हो  जाओगे  बर्बाद ।
हैरत   नहीं   होती  मुझे  हिन्दुओं   तुम्हें  देखकर ,
जाना होगा  एक दिन अपना  बिस्तर  समेट कर ।
धरती नहीं बचेगी तुम्हारे लिए नहीं बचेगा समंदर ,
पुछो अपने भाईचारा सोच से कहां बनाओगे घर ।
तुम   विशाल    पर्वत  बनो   सिर्फ    पत्थर  नहीं ,
तुमसे    ले   सकता    है    कोई    टक्कर    नहीं ।
तुम्हें  मिटाने  को  विशेष  धर्म  एक साथ खड़ा है ,
तुम  खुद  को  हराने  के   लिए  अकेला  पड़ा  है।
किरणें  तुम  से   निकलती  है उसे  आग बना दो ,
खुशबू  भरी  गुलाब से  कांटो भरा  बाग बना दो ।
दूरियां मिटा कर फिर से पुराना इतिहास बना दो ।
मैं प्रमोद साथ हूं तुम्हारा हर जन्म में।
भारत भूमि को ऋषि मुनियों का हिंदू राष्ट्र बना दो ।
नए  भारत  में  तुम  हो , रहो  गफलत  में  नहीं ,
आग की दरिया में तुम हो समंदर में नहीं ।।
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प्रमोद मालाकार की कलम से

©pramod malakar #धुआ धुआ हो रहा है घर तुम्हारा