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गुमशुम गुमशुम बैठी थी वो आशा और निराशाओं के बीच इन

गुमशुम गुमशुम बैठी थी वो
आशा और निराशाओं के बीच
इन्तेजार था उसे किसी का
जो था उसके बड़े करीब
हृदय में उसके
हलचल सी मची थी
एक झलक उसकी पाने को
उसके नयन अश्रु से भरे थें
सागर जैसे छलक रहे थें
धीरे धीरे वो
सिसक रही थी
तुम कब आओगे पूछ रही थी।

नीरज की कलम से... तुम कब आओगे।
गुमशुम गुमशुम बैठी थी वो
आशा और निराशाओं के बीच
इन्तेजार था उसे किसी का
जो था उसके बड़े करीब
हृदय में उसके
हलचल सी मची थी
एक झलक उसकी पाने को
उसके नयन अश्रु से भरे थें
सागर जैसे छलक रहे थें
धीरे धीरे वो
सिसक रही थी
तुम कब आओगे पूछ रही थी।

नीरज की कलम से... तुम कब आओगे।