गाँव की सरहदों को, पार कर ,आती बस...जब पहुचती है, शहर के शोर-गुल,और, मतलबी चौराहों पर... रुकती है, कुछ अरमानो को उनके गंतव्य तक ,छोड़ने के लिए ठसा-ठस भरी बस से,उतरता है ... 'एक देहाती युवा'गेहूवा रंग वाला, पैरो में चप्पल डाले,कंधे पर लाल गमछा पीठ पर झोला,जिसमे, कुछ प्रतियोगी पुस्तके, कुछ पुरानी नोट्स, कुछ देहाती लिबास, ठूस-ठूस कर भरा होता हैहाँथ में एक गठरी, जिसमे चावल, दाल , चना, आटा , बजरी और महुआ की थैली... अचानक, आधुनिक साज-सज्जा से युक्त शहरी 'भीड़' घूरता हुआ,उससे धमकाता है... तुम्हे यदि, हमारे...बीच रहना है,तो तुम्हे छोड़ना पड़ेगा,ये देहाती तौर-तरीके ये गमछा, ये लिबास,ये चप्पल,इन गठरियों का साथ भी... उसने स्वीकार की ,अपनाने को, शहर के सारे तौर-तरीके.. लेकिन ,गठरियों का त्यागना भी...?नही !! इन गठरियों में , महज,आटा,चावल,दाल, महुवा ही नहीं... उसके माँ- बाप की उम्मीद ,सपने ,आस, प्यार , और विश्वास है जिसे सर पर लाद कर ,खुद उसका बाप बस स्टैंड तक ,छोड़ने आया था... जिसे त्यागना , उसके लिए... खुद के वजूद को खत्म करने जैसा है.... ____________________________ © भाष्कर #NojotoQuote #देहाती #लड़का