#OpenPoetry शक्ल ओ सूरत बिगाड़ के रख दी, दिल की बस्ती उजाड़ के रख दी। मैंने मुश्किल से जमाए थे क़दम, उसने हस्ती उखाड़ के रख दी। वो जिसके पांव के कांटे निकले हम ने थे। उसी ने दिल में एक फांस गाड़ के रख दी। चिट्ठी ले कर के एक गुलाम आया, बड़ी मुद्दत के बाद पैग़ाम आया, मेरे दिलबर का जो ही नाम आया, उसने वो चिट्ठी भी फाड़ के रख दी । शक्ल ओ सूरत बिगाड़ के रख दी, दिल की बस्ती उजाड़ के रख दी। मैंने मुश्किल से जमाए थे क़दम, उसने हस्ती उखाड़ के रख दी।