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न धूप हुई, न बरसात आयी मेरी जमी पर मेरी जात आयी न

न धूप हुई, न बरसात आयी
मेरी जमी पर मेरी जात आयी
न रास्ते हुए न गली आयी
मेरे कच्चे मकान पर पल्ली आयी
न सुकून आया कभी, न नींद आयी
मेरे सपने में सिर्फ, सामाजिक रीत आयी
न बहाने आए, न नफरत आयी
जिंदगी निकलती गयी, कभी न फुर्सत आयी 
न दर्द हुई, न कभी रात आयी 
मेरी किस्मत अच्छी हो, न  कभी बात आयी 

न धूप हुई, न बरसात आयी 
मेरी जमी पर मेरी जात आयी 
न इंसान हुआ यहां कोई, न इंसानियत आयी
इन्सान ने इंसानो को दर्द दिया, जानवरों पर रहम आयी
न कर उसकी भलाई, छोटी जात कह धिक्कार लगाई
जब अधिकार की बात कहो तो खुद खाए रस मलाई
हमे जातियों में तोड़ कर कहें गर्व से कहो हम सभी हिन्दू हैं भाई

©Aarav shayari
  #hindipeom