सहमति इश्क़ की हर तरफ़ से थी, बातें सिर्फ़ एक तरफ़ से थी । ये नहीं था कि कभी इकरार नहीं था उनकी हाँ भी थी मोहब्बत भी थी और वो भी थी मोहब्बत की फ़ज़ीहत हुई कुछ ऐसी सिर्फ़ कल्पना शेष रही वो भी तेरी जैसी अब जो हैं कविताएँ शेष हैं सिर्फ़ इश्क़ विशेष हैं परखता रहता हूँ उनकी तरफ़ से आने वाली हवाओं को आँखें बंद कर बाहों में उनका एहसास लेता हूँ आज भी दिल्ली मेट्रो की भीड़ में हर काले कलेचर वाली फ़िज़ा को तेरा मान लेता हूँ इंतज़ार अब मेरा कहीं होता नहीं , अक्सर अब सफ़र भी मेट्रो से होता नहीं इश्क़ की पहल दिल्ली से थी क्यूँकि बड़ी-बड़ी आँखों वाली लड़की वहीं से थी । (शेष कभी और) #batar & दिल्ली का इश्क़