कुछ मासूमियत, कुछ दीवानगी, कुछ अक़ीदत, कुछ फ़क़ीरी, कुछ शराफ़त, कुछ शरारत, और वह सब जिसे इश्क़ कहते है,
नन्हे-मुन्नों में ही दिखता है, जिन्हें हम ख़ुदा कहते है,
कोई देखता है कोई नज़र अंदाज़ करता है, जब भी युद्ध होता है सबसे ज़्यादा नुकसान और तबाही, उन छोटे-छोटे से प्यारे मासूम बच्चों को होता है, जन बेचारों को नही पता होता है, कि यह समझदार लोग ऐसा क्यों करते है ? हाल ही में युक्रेन में हुआ, फिलिस्तीन और इज़राइल एक दूसरे पर टूट पड़ा, आतंकवाद ने अपना काम किया और एक ताकतवर देश ने चंद आतंकवादी को मारने के लिए मार-काट का ऐसा मंजर दिखाया कि यह कहर टूटता है, जिसे सबसे ज़्यादा झेलना पड़ता है, उस हर एक युद्ध झेलते देश में, औरतों और बच्चों के प्रति हम सभी की मानसिकता काम नहीं कर रही है, हम हर जगह मज़हब के नाम में से फैसला करने लगे तो इंसानियत बहुत जल्दी दम तोड़ देगा, वैसे भी वो आधा मर चुका है।
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