बचपन और शैतानी देखते ही देखते दिन का उजाला, शाम को ठहर गया उम्र का एक पड़ाव गुजर गया वो सूरज को तपाना, फिर जाके उठना वो मां का चिल्लाना, पर कुछ नहीं सुनना भाई-बहन का बेवजह यूं ही लड़ना बिंदास जीना, वो देर रात तक जगना वो तो मीठा पानी था, जो बह गया उम्र का एक पड़ाव गुजर गया जूनून और जोश भी था जी भर पढ़ने में भी निकाल देते रात भर हर काम में आगे रहने को तत्पर याद रहेंगे वे हसीन पल उम्र भर घरौंदा बनाया हाथों से वह ढह गया उम्र का एक पड़ाव गुजर गया गुजर गया