जब झूठ से काम निकल रहा है फिर सच का बोझ कोई क्यों उठाएगा शहर भर में फल सस्ता मिल रहा फिर खामखां बाग कोई क्यों लगाएगा जब खुशियां सारी छोड़ जाने में हैं फिर भला लौटकर कोई क्यों आएगा चंद पैसों में निभ रहें हैं रिश्ते मूर्ख ही होगा जो दिल से निभाएगा खुद मुझे नहीं अभी तक समझ मेरी फिर ये जमाना मुझे क्या खाक समझाएगा ये जमाना यूं ही चलता आया है जमाने से ये जमाना जमानों तक यूं ही चलता जाएगा ©Ahsas83 #KhaamoshAwaaz #jhuth