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मैंने लोगों को लकीरें घूरते देखा है। कहते हैं, अभ

मैंने लोगों को 
लकीरें घूरते देखा है।
कहते हैं, अभी उनका वक्त नहीं।
मैंने अपनों को टूटते देखा है,
चाहतों को छूटते देखा है।
जिंदगी माना था जिसे,
उसकी सांसों को थमते देखा है।
लकीरें क्या देखूं मैं?
तकलीफों में भी 
मैंने जिंदगी पलटते देखा है।
आसमान पर उड़ने वाले,
 नज़रे लकीरों पर नहीं।
उन्हें सूरज से लड़ते देखा है।

©Rudeb Gayen
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