।।रहीम दोहे।। कहु रहीम केतिक रही केतिक गई विहाय माया ममता मोह परि अंत चले पछिताय । धन थोडो इज्जत बडी कह रहीम की बात जैसे कुल की कुलवधू चिथरन माहि समान। साधु सरा है साधुता जति जोखिता जान रहिमन साॅचै सूर को बैरी करे बखान । रहिमन विद्या बुद्धि नहि नही धरम जस दान भू पर जनम वृथा धरै पशु बिन पूॅछ विशान । #कविता #विचार #दोहे