भटकता भटकता पहुँच गया, न जाने कब इश्क़ कि दुनियाँ में हर तरफ छाही खुशियों की महक, जो महका रहीं हैं सासें मेरी मुलाक़ात हुई महबूब से, उनसे इश्क़ की कुछ बातें भी हुई छाने लगा नशा मोहब्बत का, धड़कने मेरी इश्क़ में दीवानी हुई कतरा-कतरा महकने लगा हर पल मैं खुश रहने लगा आरज़ू सब पूरी मेरी होने लगी, इश्क़ में मैं डूबने लगा वक़्त ने ली करवट कुछ इस तरह, दर्द में आँसुओं का सागर बहने लगा रहती थी दिल के घर में वो रानी कि तरह अब इस दिल से जुदा होने लगी 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏 💫Collab with रचना का सार...📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को प्रतियोगिता:-22 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 8 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा। 💫 प्रतियोगिता ¥22:- इश्क़ की गलियों में