हृदय में छुपकर कोई, बद से बदतर हालात में, अंधेरी सी, सुन्न रात में, बेलगाम तूफान और तड़ित, टूटती मूसलधार बरसात में, संयम से, गंभीर आवाज में कहता है कि, सब ठीक होगा! फिर इर्द-गिर्द देखकर इस सांत्वना को निंगलता हूँ इस आशय के साथ कि कुछ इंसान और संबंध वक़्त के साथ गुजर गए, कुछ सभ्यताएं हड़प्पा मोहनजोदड़ो हो गए, कुछ इंद्रप्रस्थ लुट गए, कुछ गांधार मिट गए, जो बचे, वो ककहरे की किताब के सस्ते से मोल बिक गए। अचानक लगा कि सब अच्छा होना सांत्वना या आगामी खुशफहमी नहीं एक व्यंग्य या संताप है, एक भद्दा क्रूर सा मजाक है। अब कुछ भी भला होना एक दर्दनाक मौत से भी भयंकर और अनचाहा श्राप है। श्राप