जब पुत्र या पुत्री विद्रोही हो जाता हैं, माता-पिता क्या-क्या सहते होंगे। लोगों के ताने सुन कर भी, कुछ नहीं उनको कहते होंगे। अंदर ही अंदर सिहरते होंगे, मोम की भांति पिघलते होंगे। दुःख दिया है अपने ने, सोचा ना था जिसे सपने में। माँ पर क्या बितती होगी, अंदर ही अंदर सिसकती होगी। संतान कितना भी बड़ा विद्रोही हो, माँ तो आखिर माँ हैं...... अपनी संतान खोने से डरती होगी। पिता बेचारा खुलकर रोते नहीं होंगे, बेफ़िक्र पर वे सोते नहीं होंगे। रह रह कर याद करते होंगे, अब क्या-क्या सहना तोहमतें होंगे। जीते जी वे मर से गए हैं, अपनों से ही डर से गए हैं। दुःखों का घड़ा सूखा पड़ा था, अचानक सभी भर से गए हैं। ....... शेष ( भाग - 2 ) ©Babusaheb Dev #विद्रोही_संतान #Notzo #AWritersStory