मेरे इश्क़ की नज़ाकत न समझी उसने,, इस तरह किया उसने मुझे बेक़दर.. जिसको समझा मैंने अपनी जिंदगी का पनाह,, जिसके लिए रहता था मैं बेसब्र... मेरे इश्क़ की नज़ाकत न समझी उसने,, इस तरह किया उसने मुझे बेक़दर.. हलचल होती थी जिसकी आहट् मात्र से मेरी ज़िंदगी में,, आज उनके लिए है जिंदगी बेखबर... मेरे इश्क़ की नज़ाकत न समझी उसने,, इस तरह किया उसने मुझे बेक़दर.. मेरी निगाहें तो आज भी उनकी राह देखती है,, दूर दूर तक आये न वो मुझे नज़र... मेरे इश्क़ की नज़ाकत न समझी उसने,, इस तरह किया उसने मुझे बेक़दर.. बेक़दर