वो दिन भी कितने अच्छे थे जब माँ सूत देती थी और पापा कूट देते थे फिर भी अपन चौड़े में रहते थे, जवानी आते ही मानो जैसे सूताई-कूटाई पर अंकुश लग गया तरसते रह गए उस मार के भीतर स्नेह को और अजीब सा एक डर मन में घर कर गया, डर था भविष्य बनाने का जिंदगी को संवारने का उलझनों भरी विषम परिस्थितियों से खुद से खुद को महफूज़ निकालने का, मंजिल के पास पहुँच कर फिर पाकर उसे खुश तो हो गए पर एक भाव जो अपने थपेड़ों में समेटे थे वो दिन भी कितने अच्छे थे। #YQdidi #वो_दिन - @NaPoWriMo #FreakySatty #SattyPoetries