जब देखता हूँ, खोता हुआ मासूम बचपन, बदलाव से डरता है मन! जब देखता हूँ, सूखता माँ-बाबू जी का तन, बदलाव से डरता है मन! आजीविका ने बाँध रखा है ऐसे, गाय से दूर बछड़ा बँधा हो जैसे, न वक़्त है अपने लिए, न अपनों के लिए, न ही ख़ुदा के लिए! जब देखता हूँ, हाथों से फिसलता इस जीवन का रण, बदलाव से डरता है मन! !! बदलाव से डरता है मन !! #aestheticthoughts #philosophy #yqhindi #inspiration #diary #yqdidi #life #BadlavKaDarr