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सच लिखूंगी, कभी कोशिश ही न की थी तुम्हें भुलाने की

सच लिखूंगी, कभी कोशिश ही न की थी तुम्हें भुलाने की, हां! पर अब कोई चाह भी नहीं तुम्हें पाने की, आज़माइशें बहुत लीं हैं ख़ुदा ने मेरी, कि ज़रूरत नहीं अब तुम्हें, मुझे और आज़माने की, "लौटना" मेरी फितरत थी, पर अब उसूल बदल लिए हैं, कि सोचूंगी तक न अब वापस आने की, बेवफ़ा तुम नहीं मगर वफ़ा भी न की थी तुमने, मेरा क्या? मेरी तो आदत थी बेवजह प्यार जताने की, इतनी दुआ है ख़ुदा से कि तुम भी किसी को टूट कर चाहो, जो तुम्हें नज़रअंदाज़ करे, ताकि पता तो लगे तुम्हें  कीमत दिल लगाने की, समझाते तो सब हैं,पर समझता कोई नहीं, ख़ैर! अब तो ख्वाहिश भी नहीं किसी को कुछ समझाने की , कहते हैं वह कि ख़ुश रहा करो, कैसे बताएं कि तकलीफ़ होती है किसी अपने के बदल जाने की, मेरे पास तो बहुत वजह हैं जो तुमसे दूर हूं, तुमने तो बेवजह ही छोड़ा था, ज़रूरत तक न समझी थी वजह बताने की,एक शिकवा तो बेशक़ उस ख़ुदा से भी रहेगा, कि जब पता था कि हमारी राहें अलग हैं , तो फिर क्या ज़रूरत थी हमें मिलवाने की??! ,कल अपने दिल को भी समझा लिया मैंने कि पत्थरों से फूल बनने की तमन्ना ही क्यूं  की,अब जो ठोकर लगी है तो ख़ुद संभलो, कि हिम्मत नहीं है मुझमें तुम्हें बहलाने की, लहरों से शिकायत क्या करना! कुसूर भी तो अपना ही था, आख़िर ऐसी भी क्या मजबूरी थी किनारे पर घरौंदा बनाने की?? आजकल तो  ज़ख्म देने वाले भी मरहम लिए घूमते हैं, सामने हमदर्द और पीछे वजह ढूंढते हैं तुम्हें रुलाने की, जब ख़ुद से ख़ुद की हार होती है तो इंसान रोता नहीं है, आदत पड़ जाती है उसे मुस्कुराने की, तन्हाइयां हीं भाती हैं मुझे अब, ख्वाहिश ही नहीं होती महफ़िल सजाने की, कल पूछा किसी ने जो कि"क्या अब मोहब्बत होगी कभी तुम्हें"?? तो दिल ने बस यूं कहा"राना" एक बार की गलती से सबक लो और कसम खाओ ये ग़लती दोबारा न दोहराने की!! it's long but deep just read it once !!! I'm sure u will like it becuz somewhere everyone can relate it!! #mustreaditonce #couldberelatable #feelings
सच लिखूंगी, कभी कोशिश ही न की थी तुम्हें भुलाने की, हां! पर अब कोई चाह भी नहीं तुम्हें पाने की, आज़माइशें बहुत लीं हैं ख़ुदा ने मेरी, कि ज़रूरत नहीं अब तुम्हें, मुझे और आज़माने की, "लौटना" मेरी फितरत थी, पर अब उसूल बदल लिए हैं, कि सोचूंगी तक न अब वापस आने की, बेवफ़ा तुम नहीं मगर वफ़ा भी न की थी तुमने, मेरा क्या? मेरी तो आदत थी बेवजह प्यार जताने की, इतनी दुआ है ख़ुदा से कि तुम भी किसी को टूट कर चाहो, जो तुम्हें नज़रअंदाज़ करे, ताकि पता तो लगे तुम्हें  कीमत दिल लगाने की, समझाते तो सब हैं,पर समझता कोई नहीं, ख़ैर! अब तो ख्वाहिश भी नहीं किसी को कुछ समझाने की , कहते हैं वह कि ख़ुश रहा करो, कैसे बताएं कि तकलीफ़ होती है किसी अपने के बदल जाने की, मेरे पास तो बहुत वजह हैं जो तुमसे दूर हूं, तुमने तो बेवजह ही छोड़ा था, ज़रूरत तक न समझी थी वजह बताने की,एक शिकवा तो बेशक़ उस ख़ुदा से भी रहेगा, कि जब पता था कि हमारी राहें अलग हैं , तो फिर क्या ज़रूरत थी हमें मिलवाने की??! ,कल अपने दिल को भी समझा लिया मैंने कि पत्थरों से फूल बनने की तमन्ना ही क्यूं  की,अब जो ठोकर लगी है तो ख़ुद संभलो, कि हिम्मत नहीं है मुझमें तुम्हें बहलाने की, लहरों से शिकायत क्या करना! कुसूर भी तो अपना ही था, आख़िर ऐसी भी क्या मजबूरी थी किनारे पर घरौंदा बनाने की?? आजकल तो  ज़ख्म देने वाले भी मरहम लिए घूमते हैं, सामने हमदर्द और पीछे वजह ढूंढते हैं तुम्हें रुलाने की, जब ख़ुद से ख़ुद की हार होती है तो इंसान रोता नहीं है, आदत पड़ जाती है उसे मुस्कुराने की, तन्हाइयां हीं भाती हैं मुझे अब, ख्वाहिश ही नहीं होती महफ़िल सजाने की, कल पूछा किसी ने जो कि"क्या अब मोहब्बत होगी कभी तुम्हें"?? तो दिल ने बस यूं कहा"राना" एक बार की गलती से सबक लो और कसम खाओ ये ग़लती दोबारा न दोहराने की!! it's long but deep just read it once !!! I'm sure u will like it becuz somewhere everyone can relate it!! #mustreaditonce #couldberelatable #feelings
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Rana Hijab

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