ये समुद्र निगल गया सूरज जमीन में गाड़ गया फरमान ए पैग़ाम हाथों से फिसल गया छू रही थी लहरें पहरम ए यादों में निकल गया आस की वो प्यास बुझती सुंदर दृश्य में निकल गया अंकों में हाका हल्का सा धक्का देकर वक्त फिसल गया संभली बदली बंदरगाह में बंधकर अटक गया दूर नारंगी सी चादर ओढ़ कर मेरी रूह से एक वादा पिघल गया उफ ये नील से नारंगी रंग हर्षिता की ओक में भरकर फिसल गया कायल था या घायल पिघलता सूरज जमीन को निगल गया। ©️ जज़्बात ए हर्षिता Good Morning Inscriptors 🙏🏻 🖤 #SIpicprompt898 is out for collab by Sublime Inscriptions 🤗 🖤 We invite you to engrave on our beautiful picture with your sublime inscriptions 🖋️